Sunday, August 3, 2025
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History of Bhadohi: धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास की कहानी…

History of Bhadohi

History of Bhadohi: उत्तर प्रदेश के भदोही जिले, जिसे पहले संत रविदास नगर के नाम से जाना जाता था, का एक समृद्ध इतिहास है। यह जिला कालीन उद्योग के लिए विश्व प्रसिद्ध है और इसे “कालीन नगरी” के नाम से भी जाना जाता है।

प्राचीन काल

लगभग 400 वर्ष पूर्व, भदोही परगना में भर जाति का राज्य था। उनकी राजधानी वर्तमान भदोही नगर के अहमदगंज, कजियाता, पचभैया, जमुन्द मोहल्लों के मध्य स्थित बाड़ा, कोट मोहल्ले में थी। भरों का राज्य इस क्षेत्र सहित आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, इलाहाबाद एवं जौनपुर आदि में भी विस्तृत था।

जिला गठन

30 जून 1994 को, भदोही को उत्तर प्रदेश के 65वें जिले के रूप में स्थापित किया गया। दिसंबर 1997 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने जिले का नाम बदलकर संत रविदास नगर रखा।

नाम परिवर्तन

2014 में, समाजवादी पार्टी की सरकार ने संत रविदास से जिले का नाम पुनः बदलकर भदोही कर दिया।

विषयसूची

भदोही जिला इलाहाबाद, जौनपुर, वाराणसी, मीरजापुर की सीमाओं को स्पर्श करता है। यहां का कालीन उद्योग विश्वप्रसिद्ध है और कृषि के बाद दूसरा प्रमुख रोजगार का स्रोत है।

History of Bhadohi (आधुनिक पहचान)

भदोही का कालीन उद्योग 16वीं सदी से प्रसिद्ध है, जिसका उल्लेख ‘आइन-ए-अकबरी’ में मिलता है। यहां का कच्चा माल स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं होता, लेकिन कुशल श्रमिकों की उपलब्धता के कारण भदोही विश्व बाजार में अपनी पहचान बनाए हुए है।

कृषि

कालीन उद्योग के अलावा, कृषि भी यहाँ की प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। क्षेत्र में धान, गेहूं, और दालों की खेती व्यापक रूप से की जाती है। कृषि उत्पादों का उपयोग स्थानीय उपभोग के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में निर्यात के लिए भी होता है।

नदियाँ

भदोही जिला गंगा नदी के मैदानी इलाके में बसा हुआ है, जिसकी दक्षिणी सीमा गंगा नदी से मिलती है। गंगा नदी के अलावा, जिले में वरुणा और मोरवा जैसी छोटी नदियाँ भी प्रवाहित होती हैं, जो कृषि और सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण हैं।

खानपान

भदोही का खानपान उत्तर प्रदेश की पारंपरिक व्यंजनों से प्रभावित है। यहाँ के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन का आनंद लेते हैं। सामान्यतः रोटी, दाल, सब्जी, चावल, और विभिन्न प्रकार के अचार यहाँ के दैनिक आहार का हिस्सा हैं। त्योहारों और विशेष अवसरों पर मिठाइयाँ जैसे लड्डू, जलेबी, और पेड़ा प्रमुख रूप से बनाई जाती हैं।

प्रमुख उद्योग

जिला मुख्यतः अपने कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध है, जो यहाँ की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ है। इसके अलावा, हस्तशिल्प, लकड़ी के खिलौने, और पीतल के बर्तन बनाने जैसे कुटीर उद्योग भी यहाँ प्रचलित हैं। इन उद्योगों में स्थानीय कारीगरों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो अपनी कला और कौशल के माध्यम से जिले की पहचान को सुदृढ़ करते हैं।

कुछ अन्य बातें

संत कबीर नगर, उत्तर प्रदेश का एक जिला है, जो 5 सितंबर 1997 को बस्ती जिले से अलग होकर बना था। 2011 की जनगणना के अनुसार, संत कबीर नगर की कुल जनसंख्या 1,715,183 थी, जिसमें पुरुषों की संख्या 869,656 और महिलाओं की संख्या 845,527 थी। जनसंख्या घनत्व 1,042 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था। लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 972 महिलाओं का था। कुल साक्षरता दर 66.72% थी, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 78.39% और महिला साक्षरता दर 54.80% थी।

शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या 128,531 (7.49%) थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1,586,652 (92.51%) थी। यह आंकड़े 2011 की जनगणना पर आधारित हैं, और वर्तमान में जनसंख्या, जनसंख्या घनत्व, लिंग अनुपात और साक्षरता दर में परिवर्तन संभव है।

कॉलेज विश्वविद्यालय और प्रमुख शिक्षण संस्थान

इनमें संत कबीर अकैडमी और हीरालाल रामनिवास इस नॉट गोत्र महाविद्यालय प्रसिद्ध है। संत कबीर अकादमी मगहर में स्थित है, जो संत कबीर नगर जिले का एक प्रमुख स्थान है, यह अकादमी संत कबीर के जीवन, दर्शन, कला और साहित्य के अध्ययन और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। हीरालाल रामनिवास स्नातकोत्तर महाविद्यालय खलीलाबाद में स्थित है और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय से संबद्ध है। यहाँ रोवर्स रेंजर्स जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जो छात्रों के व्यक्तित्व विकास और सामुदायिक सेवा में योगदान के लिए महत्वपूर्ण हैं।

उल्लेखनीय है कि संत कबीर नगर में संत कबीर के निर्वाण स्थल मगहर में एक अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना की योजना है, जिसका उद्देश्य संत कबीर की स्मृतियों को संरक्षित करना और उनके जीवन दर्शन को व्यापक स्तर पर प्रचारित करना है।

पर्यटन और प्रसिद्ध स्थल

  • मगहर (संत कबीर चौरा): यह स्थान संत कबीर दास की निर्वाण स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। यहां उनकी समाधि और मजार स्थित हैं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक हैं। मकर संक्रांति (14 जनवरी) के अवसर पर यहां वार्षिक महोत्सव का आयोजन होता है।
  • महादेव मंदिर (तामा): खलीलाबाद से लगभग आठ किलोमीटर दूर तामा गांव में स्थित यह मंदिर भगवान तामेश्वर नाथ को समर्पित है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां बड़े मेले का आयोजन होता है।
Mahadev Temple Tama
  • कटका: तामेश्वरनाथ से तीन किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित यह स्थान प्राचीन स्थल और समय माता मंदिर के लिए जाना जाता है।
  • अमरडोभा: यह कस्बा अपने हथकरघा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है, जहां गमछा, चादर, धोती, कुर्ता और लुंगी जैसे वस्त्र बनाए जाते हैं।

History of Bhadohi: भदोही का समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, कृषि, और उद्योगों का संगम इसे उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण जिलों में शामिल करता है। इस प्रकार, भदोही जिले का इतिहास सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है, जिसने इसे उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलों में शामिल किया है।

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Raushan Singh
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